<p style="text-align: justify;"><strong>Bade Ghulam Ali Khan Unknown Facts: </strong>संगीत की दुनिया में बड़े गुलाम अली खां का नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है. 20वीं सदी में उन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत से लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी. आज उनकी 55वीं पुण्यतिथि है. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली गायकों में से एक थे. बेमिसाल गायकी की वजह से उन्हें 20वीं सदी का तानसेन भी कहा जाता था. भले ही संगीत का उनका करियर बहुत लंबा न रहा हो, लेकिन कम समय में ही वह लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे, जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>iपाकिस्तान में हुआ था जन्म</strong></p> <p style="text-align: justify;">बड़े गुलाम अली खान का जन्म 2 अप्रैल 1902 के दिन पाकिस्तान के लाहौर के पास केसुर नाम के गांव में हुआ था. बचपन से ही उनमें संगीत के प्रति रुचि थी. उनके परिवार में एक से बढ़कर एक संगीतकार थे. उनके पिता अली बख्श खां मशहूर सारंगी वादक और गायक थे. उनके चाचा भी संगीत से जुड़े हुए थे. बड़े गुलाम अली खां ने संगीत की शुरुआती तालीम अपने चाचा से ही ली थी. कहा जाता है कि वह दिन में 20-20 घंटे रियाज करते थे. </p> <p style="text-align: justify;"><strong>ऐसे शुरू हुआ था करियर</strong></p> <p style="text-align: justify;">अपने करियर की शुरुआत उन्होंने सारंगी बजाने और अपने चाचा के लिखे गीत गाने से की. साल 1938 में उनके पहले कॉन्सर्ट ने उनकी जिंदगी बदल दी और उन्हें पहचाना जाने लगा. उन्होंने ठुमरी की नई शैली इजाद की. 'याद पिया की आए', 'कटे न विरह की रात', 'तिरछी नजरिया के बाण', 'आए न बालम' और 'क्या करूं सजनी' को आज भी संगीत में रुचि रखने वाले बहुत ही शौक से सुनते हैं. </p> <p style="text-align: justify;"><strong>लता दीदी के लिए कही थी यह बात</strong></p> <p style="text-align: justify;">लता मंगेशकर खां साहब को अपना उस्ताद मानती थीं. उनसे जुड़ा उनका एक किस्सा बड़ा दिलचस्प है. एक बार पंडित जसराज के साथ वह गीतों और बंदिशों पर चर्चा कर रहे थे, तभी लता का जिक्र आ गया. फिर क्या था बेसाख्ता होकर बड़े गुलाम अली कह बैठे कि ससुरी कभी बेसुरी नहीं होती..वाह क्या अल्लाह की देन है. जीवन के अंतिम समय उनके बहुत कष्टदायक रहे. दरअसल, वह लकवा के शिकार हो गए थे, फिर भी अपने बेटे मुनव्वर अली खां की मदद से वह गाते रहे. 25 अप्रैल, 1968 को हैदराबाद के बशीरबाग पैलेस में उन्होंने अंतिम सांस ली.</p> <p style="text-align: justify;"><a href="https://ift.tt/MJS3OZC Dubey: पहले बचपन में टूटा दिल, फिर जवानी में भी अधूरी रही मोहब्बत, आम्रपाली ने अब तक क्यों नहीं की शादी?</strong></a></p>
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